बेखुदी में मैकदा ढूँढता हूँ
क्या मैं होके तुमसे जुदा ढूँढता हूँ
वो रहते हैं मन्दिर मसजिदों में
मैं अपने दिल में ख़ुदा ढूँढता हूँ
ये ज़िन्दगी भी है समन्दर की तरह
मंजिल के लिये मैं नाख़ुदा ढूँढता हूँ
जो ख़ुद से मिला कर बिछड़ गया
बड़ी शिद्दत से वो गुमशुदा ढूँढता हूँ
तू नहीं तो जीने का एहसास नही
अपने दिल के धडकनों की सदा ढूँढता हूँ
Sunday, 12 July 2009
कह्ते हैं कि अगर यह ज़िंदगी हो तो जैसे नईम
जो ज़मीन पर आसमान उतर आये तो क्या हो
वोह जो कभी अब मेरे घर भी आये तो क्या हो
कितने रंगों से सज रही है ख्वाहिशें दिल की
बारिश की बूँदों से रोशनी संवर जाये तो क्या हो
सुना है कि वोह निगाहों से कत्ल कर देते हैं
मेरी आंखों को भी ये हुनर आ जाये तो क्या हो
कोई है कि अपने ख्यालों में सिमट के रेहता है
एक तारा टूट के फलक पे बिखर जाये तो क्या हो
कह्ते हैं कि अगर यह ज़िंदगी हो तो जैसे नईम
मगर जब ये दर्द हद से गुज़र जाये तो क्या हो
वोह जो कभी अब मेरे घर भी आये तो क्या हो
कितने रंगों से सज रही है ख्वाहिशें दिल की
बारिश की बूँदों से रोशनी संवर जाये तो क्या हो
सुना है कि वोह निगाहों से कत्ल कर देते हैं
मेरी आंखों को भी ये हुनर आ जाये तो क्या हो
कोई है कि अपने ख्यालों में सिमट के रेहता है
एक तारा टूट के फलक पे बिखर जाये तो क्या हो
कह्ते हैं कि अगर यह ज़िंदगी हो तो जैसे नईम
मगर जब ये दर्द हद से गुज़र जाये तो क्या हो
मैं और मेरी ज़िन्दगी दोनों नईम हैँ
जाने ज़हन क्या है मेरा दिल क्या है
कौन जाने के मेरा मुस्तकबिल क्या है
मेरे कदम जिन रास्तों पर चले हैँ
क्या खबर उस सफर की मंजिल क्या है
आज कल तन्हाई में खुद की आदत हे
कौन जाने कि तेरी ये मेहफिल क्या है
दिल दरिया है तो निगाह समन्दर है
डूबने वाला क्या जाने कि साहिल क्या है
मैं और मेरी ज़िन्दगी दोनों नईम हैँ
मुझको नहीं मालूम कि मुश्किल क्या है
कौन जाने के मेरा मुस्तकबिल क्या है
मेरे कदम जिन रास्तों पर चले हैँ
क्या खबर उस सफर की मंजिल क्या है
आज कल तन्हाई में खुद की आदत हे
कौन जाने कि तेरी ये मेहफिल क्या है
दिल दरिया है तो निगाह समन्दर है
डूबने वाला क्या जाने कि साहिल क्या है
मैं और मेरी ज़िन्दगी दोनों नईम हैँ
मुझको नहीं मालूम कि मुश्किल क्या है
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