Sunday, 12 July 2009

कह्ते हैं कि अगर यह ज़िंदगी हो तो जैसे नईम

जो ज़मीन पर आसमान उतर आये तो क्या हो
वोह जो कभी अब मेरे घर भी आये तो क्या हो

कितने रंगों से सज रही है ख्वाहिशें दिल की
बारिश की बूँदों से रोशनी संवर जाये तो क्या हो

सुना है कि वोह निगाहों से कत्ल कर देते हैं
मेरी आंखों को भी ये हुनर आ जाये तो क्या हो

कोई है कि अपने ख्यालों में सिमट के रेहता है
एक तारा टूट के फलक पे बिखर जाये तो क्या हो

कह्ते हैं कि अगर यह ज़िंदगी हो तो जैसे नईम
मगर जब ये दर्द हद से गुज़र जाये तो क्या हो

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